कभी सोचा न था
इस नूतन युग में कभी, ऐसा भी दिन आएगा
बंद दरवाजे के पीछे , जन जन छिपा रह जायेगा
फुर्सत न थी घर आने की, वो भी अब घर आएगा
आकर के अपने ही घर में, खुद ही कैद हो जायेगा
कभी सोचा न था
मार पड़ेगी माँ की ऐसी, सदियां सारी हिल जाएँगी
जैसी जिसकी करनी होगी, दुनिया वैसा ही फल पायेगी
पहले खेल खेले हैं हमने, अब होठ हमारे वो सिल जाएगी
जितना दूषित करा है सबने, माफी ना अब मिल पायेगी
कभी सोचा ना था
विश्व पर पुरे ऐसी भी, भय की ये विपदा आएगी
दुनिया दारी और धन दौलत, धूल चाटती रह जाएगी
बनते थे ताकतवर सबमे, वो भी मौन अब रह जाएंगे
खुद की रक्षा करें तो कैसे, बस यही बोलते वह पाएंगे
कभी सोचा ना था
जो कुछ भी ये आज हुआ है, ना गहरी खाई ना कोई कुआँ है
रख कर हिम्मत विजय होना है, हर जन की बस यही दुआ है
हट जायेंगे व्यथा के ये पल, और काले बादल छट जायेंगे
निकलेगा सूरज सुख का भी, और हम फिर से आगे बढ़ जायेंगे
और हम फिर से आगे बढ जायेंगे
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