मेरा सपना
सबका होता है एक सपना, जो होता है उसका अपना
सपना तो एक मेरा भी है, पूरा करना जो मुझे यही है
कलम पकड़ी थी मैनें हाथों में, वह कर के कुछ जज्बतों में
उस कलम को ही अपना सपना बना लिया, उसी में अपना जीवन छिपा लिया
कहना था कुछ पर कहती किससे, इसलिए मैनें दोस्ती कर ली इससे
इससे अच्छा दोस्त मुझे मिलता कहाँ, और कौन है किसका यहाँ
अपने मन की सब लिख दी इसी से, बजाय कहने के यहाँ और किसी से
लिखते लिखते मुझे याद आया, जो रूक कर पढा तो कविता का रूप पाया
मैनें जो जज्बात अपने लिखे थे, वो अब तक एक कविता बन चुके थे
फिर सोचा मैनें ये भगवान की ही मर्जी है अब उसी के दरबार मे ये मेरी अरजी है
यही है मेरा सपना जो उन्हे पूरा करना है, नाम करना है मेरा बहुत और ये जीवन संवरना है
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