यू लुप झुप करता तू रात भर जलता रहा
कि आखिर बात क्या है
कभी उजाला कभी अंधेरा मनमर्जियां तू करता रहा
कि यह आई रात क्या है
दिल में है तेरे कोई रंजिश तो कह दे फिर
कि मन में तेरे जज्बात क्या है
साँझ होते ही जो सूरज ये लोप हुआ तो जला है तू
वरना तो तेरी औकात क्या है
ऐ दिए तू जलते बुझते क्यों डराता है मुझको
मन में जो मेरे तुझे ज्ञात क्या है
काम है तेरा अंधेरी रातों में करने को उजाले का
ना पूछ कि फिर मेरी जात क्या है
जानेगा तू जब सवेरे को गले लगाने ये रात चलेगी
कि तेरे सत्य का साक्षात क्या है
- Swapna Sharma
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