बंजर किसी जमीन पर भी, अन्न कभी फलता है
अंधेरी रातों को भी ,एक दिया कहीं जलता है
हर मुश्किल का होता है कोई ना कोई हल
हर रात के बाद एक दिन नया निकलता है
आलस की जो है ठानी ,तो तेरा हर दिन यूं ही टलता है
तेरी किस्मत अपने हाथों, हर लम्हा वह मसलता है
आलस को तो छोड़ ही दे तू आज नहीं तो कल
आलस को छोड़े पीछे ही यह जीवन तेरा सफलता है
गिर कर के हार ना मान तू, जो गिरे वही संभलता है
गिर कर के ही संभलने में ,भावों की तेरे तरलता है
जो एक बार की हार में बैठे उनकी जीत जाती है टल
पराजय अपना, जो कोशिश करते उनका ही जीवन सरलता है
- Swapna Sharma
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