ना जाने कब,बचपने से चलते चलते हम इतने बड़े हो गए
की धूप छाव सब सहते सहते इस मुकाम पर खड़े हो गए - Swapna Sharma
ना जाने कब,बचपने से चलते चलते हम इतने बड़े हो गए
की धूप छाव सब सहते सहते इस मुकाम पर खड़े हो गए - Swapna Sharma
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