मन्नत


इस सामाज की प्रथा से  हो गई वो कुछ विपरीत
वंश बढ़ाने की  जो थी वो तोड़  दी उसने रीत
आ गई दुनिया में,बहुत बड़ी उससे एक गलती हो गई
और जिसकी ना मांगी थी मन्नत ,वो बेटी हो गई

आलिंगन उसकी मां का बस था उसका पूरा आसमान 
इस वात्सल्य की पराकाष्ठा में मिला उसे अपना मान
सारे जग की वो अवज्ञा ,सबके अरमानों की जलती हो गई
और जिसकी ना मांगी थी मन्नत ,वो बेटी हो गई
अवज्ञा - तिरस्कार

बेकल पिता के सपनों की तवक्को की थी वो उड़ान
पर लड़ कर भी सामाज से वो दिला ना पाया उसे सम्मान
झूठी सब बातें की सब समान है वक़्त  बदलती हो गई
और जिसकी ना मांगी थी मन्नत ,वो बेटी हो गई
बेकल - बेचैन
तावक्को - आशा

कटु पर सत्य है कुत्रिम इस जग में वो ही इक ऐसा शस्त्र है
मिलाती है निभाती है बनाती वो दिल से रिश्ते सहस्र है
जो जैसा मिला उसको वैसा ही निभाने को वो ढलती हो गई
और जिसकी ना मांगी थी मन्नत ,वो बेटी हो गई
कुत्रिम- झूठी
कटु - कड़वा

अनुपम आधार इस जगत का नव जीवन का है वो सार 
निश्छल निर्भय निर्भीक ,नयन नीर में भी शक्ति अपार
दुर्गा हो कर भी वो अपनो के आगे मोम सी पिघलती हो गई
और जिसकी ना मांगी थी मन्नत ,वो बेटी हो गई
निश्छल - अटल
निर्भय निर्भीक - निडर
Swapna Sharma

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