मिल जाए कहीं

मिल जाए कहीं
 हौसले भी टूटे हैं, है बेचैन मन भी यही
 बेचैन है तो चैन फिर,  मिल जाए कहीं

 फूल  उम्मीदों के टूटे हैं जो कई बार
 सूखे बगीचे में फूल,  खिल जाए कहीं

 जागते हुए भी अधूरे से जो ख्वाब देखे थे
 फटे ख्वाबों की चादर मेरी,  सिल जाए कहीं

 अगर कष्ट सहकर ही जो सुख मिलेगा मुझे
 गहरा कोई जो घाव हो, तो वो छिल जाए कहीं
- Swapna Sharma

Share

& Comment

0 Comments:

एक टिप्पणी भेजें

 

Copyright © 2015 Kavyagar.com™ is a registered trademark.

Designed by Templateism | Templatelib. Hosted on Blogger Platform.