मन समन्दर बन जा तू , थोड़ा शांत थोड़ा उफन जा तू
कभी रह थोड़ा सा सध के ,कभी ज़िद पे अपनी तन जा तू
मन समन्दर बन जा तू
कभी उगल दे सब बाहर,कभी सब कुछ अंदर सहन जा तू
कभी अचल हो निश्य पे अपने ,कभी सहज सा मन जा तू
मन समन्दर बन जा तू
कभी अभय हो लड़ चट्टानों से,कभी निर्मल सा बन जा तू
कभी अनूठा अनुपम बन जा ,कभी तेज प्रबल सा ठन जा तू
मन समन्दर बन जा तू
- Swapna Sharma
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