बसंत
जब जब निकले सुर ज़ुबान से ,तो तराने बन गए
पतझड़ बाद बसंत आया तो ,मौसम सुहाने बन गए
अपनी ही मौज में दीवाना सा मुझे ये जहां लगता है
जब मिले थे वो अपने थे वही देखो अब ज़माने बन गए
कोई जो थे सबसे प्यारे,वो नोक पे निशाने बन गए
जो थे घर गैरो के वही आज पक्के ठिकाने बन गए
अस्त व्यस्त सी सांसे चलती है इनमें सुकून कहां है
जो सोचे थे साथी सच्छे वही अब ..फसाने बन गए
- Swapna Sharma
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