दास्तां

कहते कहते थके है अब ये दास्तां किसको सुनाएं
जीते थे कैसे और कैसे हैं  हारे  हम ये कैसे बताएं
जिन उम्मीदों का जिक्र रखा था, अपने जीवन में
उन उम्मीदों की फ़िक्र को धुएं में अब कैसे उड़ाए

जो बिखरे से सपने है उनको समेट अब कैसे सजाएं
जो ना मिला हमे उसके गम में मिले को कैसे गवाएं
गिरे हैं हम कभी बिखरे हैं कभी टूटे फिर सम्हल गए
जो ना सम्हाल पाए उनकी हिम्मत अब कैसे बंधाए
- Swapna Sharma


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