रिश्तों के धागे


रिश्तों के धागे हमेशा कच्चे ही रहते है,
बड़े नही होते वो सदा बच्चे ही रहते हैं

कभी छोटी छोटी बातों पे लड़ कर झगड़ कर
कभी नफरत से टूटते हैं कभी रहते मुकर कर
बड़ा सम्हाल के इन्हे कभी समझना पड़ता है
जो रूठे हों ज्यादा तो कभी मनाना पड़ता है
रिश्तों के धागे हमेशा कच्चे ही रहते है,
बड़े नही होते वो सदा बच्चे ही रहते हैं

कभी जिद करते है अपनो से कुछ पाने की
कभी बच्चो की तरह उस जिद में सामने की
कभी रूठ के बैठते है जैसे हारे हो किसी खेल में
कभी उलझ जाते हैं ये किसी बे मेल के मेल में
रिश्तों के धागे हमेशा कच्चे ही रहते है,
बड़े नही होते वो सदा बच्चे ही रहते हैं

कभी तुतलाते हैं तो समझ नही आ पाते ये
कभी होते है होशियार तो भी नही जताते ये
कभी नादान होके तनते कभी बनते समझदार 
कभी छोड़ देते है अपने कभी दिखाते अधिकार
रिश्तों के धागे हमेशा कच्चे ही रहते है,
बड़े नही होते वो सदा बच्चे ही रहते हैं
- Swapna Sharma

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