हयात नही बीतेगी क्या

तू बैठा अंधेरे कमरे में तो ये रात नहीं बीतेगी क्या
तू करे न करे खत्म ये बात नही बीतेगी क्या
मैने तो कहा था तुझे , छोड़ दुनिया की बातों को
तू ठान तो सही जीत की, ये मात नही बीतेगी क्या

तू लाख चाहे ठहरे तो ये मुलाकात नहीं बीतेगी क्या
जो जख्म खा बैठा अंधेरे में ,वो अघात नही बीतेगी क्या
निकल अंधेरे से ए मन तू उजालों में ,सूरज राह देखता है 
बैठेगा अंधेरे में क्या पाएगा तू, ये हयात नही बीतेगी क्या

वो लाख मशहूर हों तारे ,उनकी विख्यात नही बीतेगी क्या
आज उनका ,तो क्या हुआ उनकी फरहात नही बीतेगी क्या
तू सम्राट बन इन अंधेरों में भी ,बस अपने ही उजालों का
जो रात ही है उनकी प्रभात तो ये प्रभात नही बीतेगी क्या

- Swapna Sharma

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