पतझड़


है पतझड़ तो क्या हुआ निराश होके क्या मिलता है
पेड़ से पूछा है कभी की पत्ते खोके क्या मिलता है
ये रुत तो आनी जानी है, बसंत भी फिर आयेगी
देखो बहारों का इंतजार करके क्या मिलता है

शाख से टूटे जब पत्ता मिट्टी का होके क्या मिलता है
बे वजूद उस पत्ते को मिट्टी में सोके क्या मिलता है
मिट्टी का वो हो जाता है व्लीन हो मिट्टी में फिर 
उसको वजूद से मिल संवरके क्या मिलता है

बसंत के बोकर तू बीज , देख बोके क्या मिलता है 
हंसता मुस्कुराता जी तू , बता रोके क्या मिलता है
सबको वजूद से मिलना ,वजूद कभी मत भूलना
ईश्वर से भी डरके देख ,डरके क्या मिलता है
- Swapna Sharma

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